महाकुंभ में बने नए नागा साधु, किया स्वयं का पिंडदान

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महामंडलेश्वर और साधुओं द्वारा दीक्षा कार्यक्रम धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस तरह के कार्यक्रमों में युवा साधुओं को दीक्षा देकर सन्यास पथ पर चलने की प्रेरणा दी जाती है। प्रयागराज महाकुंभ में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर के सानिध्य में सैकड़ो नए नागा साधुओं का दीक्षांत समारोह गंगा किनारे आयोजित किया जा रहा है जिसमें स्वयं का पिंडदान करकर नागा साधु बनने की प्रथम प्रकिया को प्रारंभ किया गया ।

नागा साधु कौन होते हैं?

प्रवेश के लिए सबसे पहले इच्छुक व्यक्ति को अखाड़े के किसी मान्य और प्रतिष्ठित गुरु का शिष्य बनना होता है।
गुरु शिष्य की मानसिक और शारीरिक स्थिति का परीक्षण करते हैं कि वह साधु बनने के लिए उपयुक्त है या नहीं।
ब्रह्मचारी बनना:शिष्य बनने के बाद इच्छुक व्यक्ति को कुछ समय तक ब्रह्मचारी (प्रारंभिक साधु) के रूप में रहना पड़ता है।
इस दौरान वह गुरु और अखाड़े के नियमों का पालन करते हुए संयम, अनुशासन और साधना का अभ्यास करता है।यह समय गुरु को शिष्य की योग्यता और दृढ़ता परखने का अवसर देता है। दीक्षा संस्कार:दीक्षा प्रक्रिया के दौरान इच्छुक व्यक्ति को सांसारिक जीवन, परिवार और भौतिक इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। उसे “सन्यास दीक्षा” दी जाती है, जिसमें वह अपने सांसारिक नाम और पहचान को छोड़कर नया आध्यात्मिक नाम प्राप्त करता है। दीक्षा के अनुष्ठान में यज्ञ, मंत्र, और गुरु की आज्ञा शामिल होती है। नागा साधु बनने के लिए कठोर तपस्या और नग्न अवस्था में रहने का संकल्प लेना पड़ता है। शिष्य को किसी भी प्रकार की सांसारिक वस्त्रों और सुख-सुविधाओं को त्यागना होता है।

इसके बाद गुरु और अखाड़े के वरिष्ठ साधु “नागा दीक्षा” देते हैं। अखाड़े में स्थान और भूमिका: नागा दीक्षा के बाद साधु को अखाड़े के नियमों और परंपराओं के अनुसार कार्य करना होता है। अखाड़े में उसकी भूमिका सेवा, तपस्या और धर्म प्रचार के कार्यों में तय की जाती है। नागा साधु हिंदू धर्म की सनातन परंपरा के अंतर्गत अखाड़ों से जुड़े साधु होते हैं। ये पूरी तरह से सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर साधना और तपस्या में अपना जीवन बिताते है दीक्षा से पहले साधुओं को कठोर तप और नियमों का पालन करना पड़ता है। दीक्षा के दौरान उन्हें ब्रह्मचर्य, त्याग और तपस्या की शिक्षा दी जाती है। इस प्रक्रिया में उन्हें सांसारिक जीवन से पूरी तरह से अलग होकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी जाती है।

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